एपीजुएटिक अलसरेटिव सिण्ड्रोम (ई.यू.एस.)/अल्सर रोग : उपचार
अधिक रोगग्रस्त मछली को तालाब से अलग कर देना चाहिए तथा तालाब में कली का चूना (क्विक लाइम) जो कि ठोस टुकड़ों में हो 600 किलो प्रति हेक्टेयर/मीटर की दर से जल में तीन सप्ताहिक किश्तो में डालने से तीन सप्ताह में यह बीमारी नियंत्रित हो जाती है।
चूने के उपयोग के साथ-साथ व्लीचिंग पाउडर 10 किलो प्रति हेक्टेयर/मीटर की दर से तालाब में डाला जाना कारगर सिद्ध होता है। कम मात्रा में या छोटे पोखर में मछली ग्रसित होता पोटेशियम परमेगनेट (1 लीटर पानी में 2 ग्राम पोटेशियम परमैग्नेट) के घोल में 2 मिनट तक स्नान लगातार 3-4 दिन तक कराने से लाभ होता है।
सिफेक्स(CIFAX)- केन्द्रीय स्वच्छ जल संवर्धन संस्थान (सीफा) भुवनेश्वर के वैज्ञानिकों ने अल्सरेटिव सिन्ड्रोम के उन्मूलन हेतु दवा बनाई है।प्रति हेक्टेयर/ 1 मीटर गहराई में 1 लीटर की दर से पानी का उपचार आवश्यकतानुसार किया जा सकता है